- गोलमा में आयोजित श्रीराम कथा में शिव पार्वती विवाह प्रसंग का चर्चा करते हुए कथा वाचिक देवी प्रतिभा जी
- कुशेश्वरस्थान दरभंगा :
- माता पिता की आज्ञा से पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वन में चली गई। उन्होंने एक हजार वर्ष मूल फल खाकर, कुछ दिन कठोर उपवास तो कुछ दिन केवल जल ग्रहण कर तप किया। तीन हजार वर्षों तक केवल सुखे बेलपत्र खाकर रही तो बाद में इसे खाना भी छोड़ दिया। उनके नित्य प्रति दिन तप के प्रभाव से एक दिन आकाशवाणी हुई कि हे गिरिराज कुमारी तुम्हारा तपस्या सफल हुए। तुम्हें निश्चय ही भगवान शिव के रूप में पति प्राप्त होगा। इतना कठोर तप करने वाला इस पृथ्वी पर कोई पैदा नहीं हुआ है।जब तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आवें तब घर चली जाना। आकाशवाणी सुनकर पार्वती जी परम प्रसन्न हुई।
श्रीराम कथा में कथा वाचिक देवी प्रतिभा जी ने शिव पार्वती विवाह प्रसंग का चर्चा करते हुए कहा कि इस विवाह की कथा को जो स्त्री और पुरुष को कहेंगे या गाएंगे वे कल्याण के कार्यों और विवाहादि मंगलों में सदा सुख प्राप्त करेंगे। कथा को आगे बढ़ाते हुए देवी प्रतिभा जी ने कहा कि
राजा हिमांचल और मैना के घर में कन्या के रूप में पार्वती जी के जन्म होने पर राजा ने देवमुनि नारद जी से पार्वती जी के भाग्य रेखा जानने के लिए बुलाया। कन्या के भाग्य रेखा को देखकर नारदजी ने कहा राजन यह कन्या शीलवती, कोमल स्वभाव वाली, सुन्दर, सुशील, समझदार और सर्वसम्पन्न गुण वाली है।यह अम्बे उमा भवानी है।यह सदा सुहागिन रहेगी और विश्व में पुज्यनीय होगी। संसार की जो नारी इनके चरणों को सेवा करेंगे उनका कल्याण होगा।
- लेकिन भाग्य रेखा में अमंगलकारी, वनवासी, सम्पूर्ण शरीर में सर्प धारण करने वाले योगी से इसका विवाह होगा।यह सुनकर सभी दुखी होकर नारदजी से पार्वती जी के लिए सुयोग्य वर चयन करने का सुझाव देने को कहा। जिसपर नारदजी ने कहा कि शिव जी के साथ उमा का विवाह हो जाए तो ये अवगुण भी गुण हो जाएगा। ऐसा मेरा विश्वास है। राजन तुम्हारे कन्या के लिए शम्भू जी को छोड़कर और कोई उपयुक्त वर नहीं है। इसलिए इस कन्या को कल्याण के लिए इसे तप करने के लिए भेजने का सलाह दिया। उन्होंने कहा कि जैसे जैसे पार्वती किशोरावस्था में जाने लगे वैसे वैसे उनमें शिवजी के प्रति अनुराग बढ़ता गया। एक दिन माता पिता की आज्ञा से पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वन में चली गई। उन्होंने एक हजार वर्ष मूल फल खाकर, कुछ दिन कठोर उपवास तो कुछ दिन केवल जल ग्रहण कर तप किया। तीन हजार वर्षों तक केवल सुखे बेलपत्र खाकर रही तो बाद में इसे खाना भी छोड़ दिया। उनके नित्य प्रति दिन तप के प्रभाव से एक दिन आकाशवाणी हुई कि हे गिरिराज कुमारी तुम्हारा तपस्या सफल हुए। तुम्हें निश्चय ही भगवान शिव के रूप में पति प्राप्त होगा। इतना कठोर तप करने वाला इस पृथ्वी पर कोई पैदा नहीं हुआ है।जब तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आवें तब घर चली जाना। आकाशवाणी सुनकर पार्वती जी परम प्रसन्न हुई। भगवान शिव पति के रूप में मिलेंगे यह सोचकर उनका रोम-रोम पुलकित हो गया। एक दिन भगवान शिव के आदेश पर सप्तर्षि भगवती पार्वती को परीक्षा लेने पहुंचे और कहा कि देव ऋषि नारद ने तुम्हारे बुद्धि को बिगाड़ दिया है। शिव जैसे पति के लिए इतना तप कर रही हो वह तो उदासीन, अमंगल वेष वाला, गुणहीन तथा शरीर पर सांप का माला धारण करने वाला है। हम तुम्हारे लिए अत्यंत सुंदर, सर्वगुण संपन्न और वैकुंठाधिपति वर तलाश किए हैं। उससे शादी कर लो। तब पार्वती बोली ऋषिवर मेरा शरीर पर्वत से उत्पन्न हुआ है। मेरा शरीर भले ही छुट जाए हठ नहीं छुट सकता।मेरा यह हठ करोड़ों वर्ष तक रहेगा। मैं या तो भगवान शिव से विवाह करूंगी या फिर जन्म भय कुंवारी रहुंगी। कथा के अंत में शिव पार्वती के विवाहोत्सव का वर्णन कर कथा का विश्राम किया।कथा वाचिक देवी प्रतिभा जी