दुर्केश सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज उक्त प्रदेश/बिहार। बिहार में 70 के दशक में चकबंदी की शुरुआत हुई थी. 1992 में इसे बंद कर दिया गया. हालांकि, 2021 में फिर एक बार इसे चालू कर दिया गया. इस बार कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा किया गया। वहीं उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील अंतर्गत पाकरपुर में 1972 से चकबंदी हो रही है। 2023में फाइनल के मुकाम पर हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर पाकरपुर में चकबंदी हो रही है।
ए से लेकर जेड तक के किसानो का एसीओ स्तर पर चक कांपने के दौरान दलालों के माध्यम से एक करोड़ से अधिक की वसूली की गई है।फीचर फोटो — अधिवक्ता भगेलूराम, पूर्व विधायक कादीपुर, सुलतानपुर
पाकरपुर के किसानो ने बताया: 25प्रतिशत किसान दलालों के चंगुल में नहीं फंसे। ऐसे किसान मुकदमा लड़ने के लिए विवश हैं।
किसानों की मानें तो कांग्रेस के शासनकाल में पाकरपुर में चकबंदी शुरू हुई थी। 1972 में शुरू हुई चकबंदी महाभ्रष्टाचार की शिकार हो गई। चक काटने में अनियमितता के खिलाफ किसानों द्वारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। ऐसी नौबत दो बार आई। तीसरी बार हाई कोर्ट के आदेश पर चकबंदी पाकरपुर में हो रही है। 2023 में दलालों ने करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की है। फिलहाल फार्म 23पाकरपुर में बंट चुका है।
एसीओ स्तर पर एक करोड़ की वसूली का दुष्परिणाम :
किसान A के सामने किसी का घर नहीं है। वह अपने घर के सामने गाटा संख्या 2041को लेते हुए चक मांगता है। लेकिन चक B, C, D और GतथाH को दे दिया जाता है।
किसान Aद्वारा सीओ न्यायालय में मुकदमा किया जाता है। सीओ द्वारा तीन-चार बिस्वा का चक किसान A को दिया जाता है लेकिन चक नहीं दिया जाता है। अब यह मामला अर्थात गाटा संख्या 2041 और उसके आसपास चक की मांग का मुकदमा COसे बड़ी न्यायालय में है।
गौरतलब है कि किसान Aऔर B के सामने खेत ही खेत है। दोनों को दोनों के घर के सामने चक देकर चकबंदी विभाग संतुष्ट कर सकता है।
इस सवाल पर चकबंदी विभाग के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस समय प्रदेश में सबसे ईमानदार सरकार है। इसके बावजूद पाकरपुर में चकबंदी के दौरान कांग्रेस के जमाने जैसी अनियमितता चक काटने में बरती गई है। किसानो को आपस में लड़ाने का काम किया गया है।
*चकबंदी का महत्व:*
कादीपुर विधानसभा के पूर्व विधायक अधिवक्ता भगेलूराम ने बताया :
विदेशों में जहां खेती की जाती है, वहां अमूमन एक साथ काफी बड़े खेत होते हैं। इससे कुछ भी उगाने की लागत कम हो जाती है। खेती के लिए आधुनिक व बड़े उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
देश के अधिकांश राज्यों में ऐसा नहीं होता है. इसलिए सरकार ने चकबंदी की शुरुआत की नई दिल्ली. बिहार में 70 के दशक में चकबंदी की शुरुआत हुई थी. 1992 में इसे बंद कर दिया गया. हालांकि, 2021 में फिर एक बार इसे चालू कर दिया गया. इस बार कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा किया गया. विदेशों में जहां खेती की जाती है, वहां अमूमन एक साथ काफी बड़े खेत होते हैं. इससे कुछ भी उगाने की लागत कम हो जाती है. खेती के लिए आधुनिक व बड़े उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत में अधिकांश राज्यों में ऐसा नहीं होता है। इसलिए सरकार ने चकबंदी जरुरी है।