=उपेंद्र कुशवाहा ने भी सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करके सीट बंटवारे से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है
दुर्केश सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज, 14अक्टूबर।
उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करके एनडीए में सीट बंटवारे पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की। उन्होंने लिखा, “आज बादलों ने फिर साजिश की, जहां मेरा घर था वहीं बारिश की। अगर फ़लक को ज़िद है बिजलियां गिराने की, तो हमें भी ज़िद है वहीं पर आशियां बसाने की।”
इधर महागठबंधन के लिए भी सीट शेयरिंग की राह आसान नहीं दिख रही।
वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने बयान दिया था, “महागठबंधन थोड़ा अस्वस्थ हो गया है, दिल्ली में इसके डॉक्टर मौजूद हैं।”
इस बीच पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को नॉमिनेशन करने के लिए भी कह दिया है और उम्मीदवार सोशल साइट्स के जरिए अपने नॉमिनेशन की तारीख भी सार्वजनिक कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर विवेचना करने वालों की रिपोर्ट का अध्ययन किया जाए तो निष्कर्ष निकाला जा सकता है:
बिहार में ये चुनाव निर्णायक होंगे क्योंकि इस चुनाव में जेडीयू की घटती हैसियत और नीतीश कुमार की सेहत की ख़बरों के बीच बिहार में नया नेतृत्व उभर सकता है। दो दशक तक नीतीश कुमार के इर्द गिर्द अपना भविष्य बुनने वाले जेडीयू की राजनीतिक शक्ति भी ये चुनाव तय करेगा।
वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है- नीतीश कुमार का स्वास्थ्य ठीक है। इसके बावजूद सीट बंटवारे पर वे बोल नहीं रहे हैं। आज और कल तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। बड़ा विस्फोट हो सकता है।
एनडीए के इतिहास पर नजर डालने पर ज्ञात होगा: इस गठबंधन की नींव अटलजी और नीतीश ने डाली थी। दोनों का लक्ष्य एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में समतामूलक समाज का निर्माण करना था।
समतामूलक समाज के निर्माण में खामियों को एनडीए ने धार दी। धार को तराशने के लिए वर्ष 2003में एक विशेष अखबार का पूरे बिहार में विस्तार किया गया। परिणाम ,राजद – सत्ता के पांव उखड़ गए।
आज 2025में एनडीए पर उसी प्रकार के आक्रमण हो रहे हैं जैसे कभी राजद पर होते थे। समतामूलक समाज का वादा करने वाले, एक हाथ में संविधान, दूसरे हाथ में समतामूलक समाज निर्माण का वादा करने वाले, अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा का शंखनाद करने वाले तथा एनडीए की नींव रखने वाले अटल बिहारी बाजपेयी आज हमारे बीच में नहीं हैं। जो मंसूबे एनडीए से लोग पाल रखे थे वे पूरे पूरे नहीं हुए।
भ्रष्टाचार और जंगल राज, ये दो आरोपों की आंधी ऐसी चली कि राजद , सत्ता से बेदखल हो गई।
अब बेहद स्वच्छ छवि के नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में समतामूलक समाज निर्माण के वादे के साथ एनडीए को ललकार रहे हैं। इस वादे में दम दिख रहा है क्योंकि:
उस समय के बेहद स्वच्छ छवि के नेता नीतीश कुमार को विपक्ष ही नहीं, एनडीए ही बेदम मानकर कम सीटों पर समेट दी है। अटलजी जैसे ईमानदार छवि के नेता का एनडीए में अभाव है।
















