अनमोल कुमार, नजरिया न्यूज़ सुपौल
सुपौल। बिहार में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकारबड़े-बड़े दावे और वादेकरती है. सालाना बजट का एक बड़ा हिस्सा भी इस पर खर्च भी किया जाता है. लेकिन सरकारी स्कूल की हकीकत तो स्कूल में पहुंचने के बाद ही पता चलती है.मालूम हो की सुपौल जिले के सरकारी स्कूलों का हाल. जहां विद्यालय मे भवन की कमी के कारण विद्यालय के बच्चे और शिक्षक दोनों परेशान हैं. यहां शिक्षा व्यवस्था का हाल बद से बदतर है.बिहार में सरकार शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पैसे पानी की तरह बहा रही है. इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकारी दावों की कमी नहीं. वैसे इन दावों की हकीकत देखनी हो तो जिले में स्कूलों से जुड़े कुछ आंकड़ो पर गौर करना होगा.जिले में आज भी कई स्कूल जो भवनहीन है.
वर्षो बीत जाने के बाद भी विद्यालय को अपनी जमीन तो है लेकिन अपना भवन का सपना शिक्षा विभाग स्कूल के शिक्षकों और बच्चों को दिखा रहा. लेकिन इक्के दुक्के सफलता के अलावे धरातल पर कुछ विशेष कुछ नहीं हुआ. जाहिर सी बात है, जब शिक्षा का मंदिर ही माकूल नहीं तो वहां बेहतर शिक्षा कैसे संभव होगी. जिला के त्रिवेणीगंज प्रखंड के अंतर्गत गोनाहा पंचायत वार्ड नंबर 4 स्थित प्राथमिक विद्यालय 2006 से चल रहा है तक उसे विद्यालय मेंट भवन का निर्माण और शौचालय का निर्माण भी नहीं हुआ है,फिर भी बच्चे पढ़ते नजर आ रहे हैं. विद्यालय में 134 बच्चा नामांकन है विद्यालय में कुल चार शिक्षिका हैं सभी खुले में,स्वच्छ करने के लिए बाहर जाना पड़ता है.वही प्रधानाध्यापक माधवी सिंह ने बताया कि विभाग को कई बार हम लोग आवेदन दे चुके हैं. फिर भी भवन निर्माण नहीं हो सका. लाचार होकर हम सभी शिक्षिका को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं अगर भवन निर्माण हो जाता तो सभी बच्चे अपने-अपने वर्ग में पढ़ाई करते. लेकिन यहां तो मजबूरन हम लोगों को सभी बच्चे को एक क्लास में ही पढ़ना पड़ता है।जहां विद्यालय को अपना भवन ना हों तो वहां शिक्षा और बच्चों को सुविधा कैसी होगी इसकी कल्पना की जा सकती है. यहां न पढ़ने की जगह है ना खेलने की न बच्चों के लिए शौचालय न शुद्ध पीने का पानी.