नजरिया न्यूज अररिया। रंजन राज। सनातन धर्म में कुशी अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहते हैं। यह भादो माह के कृष्णपक्ष के अंतिम दिन होता है। इस दिन कुश को उखाड़ कर पूरे साल भर के लिए घरों में रखने की परम्परा प्राचीन काल से चलती आ रही है। कुश का उपयोग सनातन सभ्यता में पूजा पाठ से लेकर शादी विवाह, मुंडन, उपनयन और श्रद्धा तक के कर्मों में उपयोग में लाया जाता है। बताया जाता है कि इसका उपयोग हिंदुओं के सनातन और वैदिक कर्मकांड और रिवाजों में होता है।
02 सितंबर को है कुशी अमावस्याइस पर विशेष जानकारी देते हुए विजय कुमार झा ने बताया कि इस बार भाद्र कृष्ण अमावस्या सोमवार 02 सितंबर को कुशी अमावस्या मनाई जाएगी। बैलवारी वार्ड नंबर 1 प्रखंड सिकटी, जिला अररिया निवासी प्रकाश झा ने बताया कि कुशी अमावस्या में कुश को उखाड़ने का विशेष महत्व होता है। उस कुश से देवपितृ और पितृकर्म का निष्पादन किया जाता है। कुश उखारने का विधान प्रातः काल है। सूर्योदय के बाद कुश का मंत्र पढ़कर इसे उखाड़ जाता है।
जानिए : कुश को उखाड़ने का समयकुश के अग्रभाग में सदाशिव रुद्र का निवास होता है। कुश के मध्य भाग में केशव का निवास होता है और कुश के मूल भाग में ब्रह्मा का निवास होता है। यह पृथ्वी पर उत्पन्न होता है, इसलिए पृथ्वी से हम लोग आग्रह करते हैं जो यह कुश हमें दे दें।
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