15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने कुशेश्वर नाथ महादेव को जलाभिषेक कर पूजा अर्चना किया।
शिव को जलाभिषेक करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
भूलोक वासी के लिए शिव कृपा पाने की यह महीना उत्तम है
कुशेश्वरस्थान :
मिथिला के प्रसिद्ध शिव नगरी कुशेश्वरस्थान में जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं का रविवार को दिनभर तांता लगा रहा। करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने कुशेश्वर नाथ महादेव को जलाभिषेक कर पूजा अर्चना किया। अहले सुबह से दोपहर एक बजे तक जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ थी। लेकिन इसके बाद भीड़ थम गई। लेकिन पूजा अर्चना करने का सिलसिला प्रतिदिन आयोजित होने वाले श्रृंगार पूजा की तैयारी करने से कुछ देर पहले समाप्त हुआ।दोपहर के भोग एवं विश्राम के बाद गर्भगृह के पट खुलने पर भीड़ कम हुई। देर शाम तक पूजा करने का सिलसिला जारी रहा। श्रावण मास के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक बड़गांव निवासी पंडित शिवाकांत ठाकुर ने कहा कि सावन माह भगवान शिव को विशेष प्रिय है। इसी माह में भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल गये थे। जहां उन्हें अर्घ्य और जलाभिषेक कर स्वागत किया गया था। भूलोक वासी के लिए शिव कृपा पाने की यह महीना उत्तम समय है। मार्कण्डय ऋषि ने लंबी उम्र प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में ही सिद्धि प्राप्त किया था। जिससे मिली मंत्र शक्ति के सामने मृत्यु देवता यमराज भी नतमस्तक हुए थे। इसी सावन महीने में समुद्र मंथन किया गया था। मंथन से निकले हलाहल को स्वयं भगवान शम्भू ने ग्रहण किया और नीलकंठ कहलाए। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवी देवताओं ने जलाभिषेक किए। भगवान स्वयं ही जल है। अतः शिव को जलाभिषेक करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। कहा कि श्रावण मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। ये चार महिना वैदिक पौराणिक यज्ञ करने का उत्तम समय होता है। जिसे चौमासा भी कहा जाता है। इस अवधि में श्रृष्टि के संचालन का दायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। अतः प्रधान देवता शिव बन जाता है।
इधर सावन के चौथे सोमवारी पूजा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के पूजा अर्चना करने में कोई परेशानी नहीं हो इसके लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी कर ली गई है। मंदिर एवं मुख्य द्वार को रंग बिरंगे ताजा फूलों से सजाया गया है। मंदिर परिसर, शिव गंगा घाट, धर्मशाला एवं बाजार के सभी सड़कों को साफ सफाई कर चकाचक कर दिया गया है। मंदिर में दर्शन पूजन करने की सारी व्यवस्था पूर्व की भांति लागू रहेगी। सभी प्रकार के चार चक्का वाहन को सतीघाट में तथा टेम्पो और बाइक पांडों से आगे ले जाने पर प्रतिबंध रहेगा। दोपहर बाद से ही श्रद्धालुओं का जत्था आने लगी है। जिसमें कांवरिया एवं दण्ड प्रणाम देने वाले शिव भक्त शामिल हैं। श्रद्धालुओं की आने का सिलसिला देर शाम तक चलता रहा।