दुर्केश सिंह/अनिल उपाध्याय/अशोक सिंह सुबेदार, नजरिया न्यूज ब्यूरो, 01मई।
आज मजदूर दिवस है। लोकसभा चुनाव 2024जारी है। देश के दिग्गज पत्रकार राजनीति की नब्ज टटोलने में लगे हैं।बीबीसी न्यूज़ की मराठी टीम ने लोकसभा चुनाव, 2024 को देखते हुए महाराष्ट्र में महिलाओं के मुद्दों को राजनीतिक दलों, जन प्रतिनिधियों और सरकार तक पहुंचाने के लिए कामकाजी और काम करके जीविका चलाने वाली महिलाओं से बातचीत की है।
ये महिलाएं अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने समुदाय के लिए कुछ चाहती हैं।वे अपना विकास करते हुए दूसरों के विकास का सपना देख रही हैं। उन्हीं मांगों और सपनों के आधार पर ये चुनावी घोषणापत्र तैयार किया गया है।
कैप्शन: महाराष्ट्र में स्थित विदर्भ इलाके का एक आदिवासी गांव में अपनी परेशानी बतातीं महिलाएं – नजरिया न्यूज
महिलाओं के मुद्दों पर चर्चा के लिए बीबीसी मराठी ने 1 मई 2024 को पुणे में एक सेमिनार का भी आयोजन किया है।
उम्र ज़ाहिर नहीं करने की शर्त के साथ पिंकी शिंदे ने बीबीसी मराठी से अपनी बात साझा करते हुए कहा, “मैंने बाथरूम में बैठकर महिलाओं को रोते हुए देखा है। ऐसा केवल यहीं नहीं है। बल्कि खेतों में, मिलों और कार्यस्थलों पर भी ऐसा है। मेरा मानना है कि महिलाओं को राष्ट्रीय अवकाश की तरह ही मासिक धर्म के दौरान चार दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए। जहां भी महिलाएं कड़ी मेहनत करती हैं। उन्हें मासिक धर्म के दौरान दो या तीन दिन नहीं तो वेतन के साथ अवकाश मिलना चाहिए।
चाहे वह मासिक धर्म के दौरान सवैतनिक छुट्टी हो या काम के लिए समान वेतन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की एकसमान उपलब्धता से लेकर समय से न्याय, हिंसा का उन्मूलन, रोज़गार के अवसर, कृषि की चिंताएं, जल प्रबंधन और नशे से मुक्ति जैसी कई मांगों को लेकर महाराष्ट्र की महिलाएं मुखरता से अपनी मांग रख रही हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी राजनीतिक दल इस समय ज़ोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं। प्रचार के दौरान बड़े-बड़े वादे किये जा रहे हैं। सभी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में कई वादे किये हैं। जबकि सत्ताधारी दल अपने कामों की गिनती करा रहे हैं। लेकिन इन सबमें महिलाओं की उपेक्षा होती है और महाराष्ट्र की महिलाओं की शिकायत है कि राजनीतिक दलों के एजेंडे में महिलाओं के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
बीबीसी मराठी ने महाराष्ट्र के पांच ज़िलों में महिला कार्यकर्ताओं से बात की और उनकी समस्याओं और मांगों को समझने की कोशिश की।
बीबीसी विदर्भ की गोंद आदिवासी महिलाओं से बात करने के लिए गोंदिया ज़िले के कुछ गांवों में गए। ये अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह जंगल पर आश्रित हैं। इन महिलाओं का कहना है कि कृषि मज़दूरी या मनरेगा का काम रोज़गार की गारंटी नहीं है। यहां की महिलाएं सुबह पांच या छह बजे ही गांव के पास जंगल में पहुंच जाती हैं।वहां दोपहर के 12 बजे तक ये महिलाएं महुआ के फूल चुनती हैं और फिर से सिटी मार्केट में जाकर बेचती हैं।
मई और जून के मौसम में यही महिलाएं जंगल से तेंदू पत्ता इकट्ठा करती हैं, फिर उसे बेचने जाती हैं लेकिन आदिवासी महिलाओं की शिकायत है कि बाज़ार के भाव से पैसे नहीं मिलते हैं।
ये महिलाएं निराशा से कहती हैं, “मोदी जी दावा करते हैं कि उन्होंने महिलाओं को इतनी सारी चीज़ें दी हैं, लेकिन हमें आज तक कुछ नहीं मिला है.”।
बीबीसी की टीम ने आंगनवाड़ी सेविकाओं और आशा वर्करों से भी बातचीत की है. आशा वर्करों ने कुपोषण की समस्या का ज़िक्र करते हुए कहा, “यहां कुपोषण है. बच्चे कुपोषित पैदा होते हैं। महिलाएं पूरा दिन जंगल में बिताती हैं, इसलिए वे अपने भोजन पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता. सरकार की ओर से भी समय पर कुछ नहीं मिलता और मध्याह्न भोजन भी पर्याप्त नहीं मिलता. बच्चों का वज़न भी कम रहता है.”।
आदिवासी महिलाओं के एक समूह ने बताया, “गांव में स्कूल और शौचालय नहीं है. आदिवासियों का फंड भी हम तक नहीं पहुंचता. ये सभी सुविधाएं मिलनी चाहिए. सरकारी घर का इंतज़ार करते-करते बूढ़े हो गए. आज भी हम झोपड़ियों में रहते हैं। देश के वरिष्ठत पत्रकार अशोक वानखेड़े टाइगर सत्ता और विपक्ष के भाषण को परख रहे हैं। 4पीएम के नेटवर्क पत्रकार और मालिक संजय शर्मा ने उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा सीट के मतदाताओं का हालचाल लिया। उनसे अमेठी की महिलाओं ने मंहगाई पर अपनी बात रखी कि कम से कम गांव में ऐसा जरूर होना चाहिए कि महिलाएं भी 400-500 रुपये महीने में कमा सके।