= प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सोच मायावती की तरह नहीं है
= मायावती जब मुख्यमंत्री थीं, तब सफाई कर्मी का पद सृजन करके लाखों बेरोजगार युवकों को नौकरी दी थीं
दुर्केश सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज, 05अप्रैल।
श्रीराम वकील हैं। इनका घर करौदी थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत गुदरा में है। इनके दोनों बच्चे पढ़े-लिखे हैं। दोनों में से किसी सरकारी नौकरी नहीं मिली। दोनों बच्चे प्राइवेट सेक्टर में नौकरी कर रहे हैं।
सीताराम राही। कादीपुर थाना क्षेत्र के मझिगवां के निवासी हैं। ये बीएससी एजी हैं। कांग्रेस के जमाने में कोआपरेटिव मंडरावा में संविदा पर नौकरी मिली। सेवानिवृत्त हो गए। पेंशन भी नहीं मिल रही है।
सीताराम राही का एक बेटा बीए बीएड है। शिक्षक की नौकरी नहीं मिली। यह बच्चा ट्यूशन करके परिवार की नैया पार कर रहा है। दूसरा बेटा भी एमए है। वह लोन पर ट्रैक्टर लेकर चला रहा है।
राहुल गांधी -केद्रीय बजट का एक निश्चित हिस्सा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को मिलना चाहिए: ह्वाट्सएप चैनल राहुल गांधी
रूप नारायण। ये बीएससी एजी हैं। कांग्रेस सरकार में इन्हें सरकारी नौकरी मिली। सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दो बच्चे हैं। दोनों पिता से अधिक पढ़ाई कर चुक है। सरकारी नहीं मिली। एक बेटा ट्रैक्टर खरीदकर चला रहा है और दूसरा बेटा प्राईवेट सेक्टर में नौकरी कर रहा है।
श्रीराम, सीताराम राही और रूप नारायण का कहना है कि बहन मायावती जब मुख्यमंत्री बनीं तो ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मी का पद सृजन करके लाखों बेरोजगार युवकों को सरकारी नौकरी दी। सभी युवा आज सरकारी कर्मचारी हैं। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में सफाई कर्मी जैसा कोई भी पद नहीं सृजन नहीं किया है। अनुसूचित जाति के बच्चे और अभिभावक बेहद निराश और हताश हैं।
रिपोर्ताज- हताश और निराशा है अनुसूचित जाति वर्ग के बेरोजगार युवक
= सफाई कर्मी का नया पद सूजित करके मुख्यमंत्री बहन मायावती ने दी थी बेरोजगार युवकों को सरकारी नौकरी
= श्रीराम, रूपनारायण और सीताराम राही के बच्चे सुशिक्षित है लेकिन नहीं मिला सरकारी काम
हाल ही में मेरी मुलाक़ात दलित और आदिवासी समुदायों से जुड़े रिसर्चरों, कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों से हुई। उन्होंने मांग की कि एक राष्ट्रीय कानून बनाया जाए, जो केंद्रीय बजट का एक निश्चित हिस्सा दलितों और आदिवासियों के लिए सुनिश्चित करे।
कर्नाटक और तेलंगाना में ऐसा कानून पहले से लागू है और वहां इन समुदायों को ठोस लाभ मिला है। UPA सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर भी दलितों और आदिवासियों के लिए “उप-योजनाओं” (Sub-Plans) की शुरुआत की थी। लेकिन मोदी सरकार के दौरान इस प्रावधान को कमज़ोर कर दिया गया है और बजट का बहुत कम हिस्सा इन वर्गों तक पहुंच रहा है।
दलित और आदिवासी लंबे समय से हक़ और प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि उन्हें सत्ता में भागीदारी और शासन में आवाज़ देने के लिए और क्या ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।
हमें एक ऐसे राष्ट्रीय कानून की ज़रूरत है जो दलितों और आदिवासियों को लक्षित करके और उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई योजनाओं के लिए बजट में एक उचित हिस्सा सुनिश्चित करे।