- मुकदमे की संख्या में हुई वृद्धि-69हजार मामले सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग
दुर्केश बहादुर सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज, 10नवंबर।
न्यायपालिका- भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10नवंबर को पूर्ण हो गया।उनके कार्यकाल का मीडिया में मूल्यांकन चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर कहते हैं, “मुझे लगता है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की प्रशासनिक क्षमता ऐसी होनी चाहिए कि वो लंबित मामलों में कमी लाएं। मौजूदा चीफ जस्टिस ने संविधान पीठ की चुनौती को तो स्वीकार किया लेकिन, वो लंबित मामलों की तादाद पर क़ाबू कर पाने में नाकाम रहे।
वैसे तो एक अध्ययन का आकलन है कि जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल में संविधान पीठ में पहले से कहीं ज़्यादा मामलों के निपटारे हुए लेकिन, उनके दौर में लंबित मामलों की संख्या में भी तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई। आंकड़ों के अनुसार जब चंद्रचूड़ ने काम संभाला था, तब 69 हज़ार केस सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग थे और अब जबकि वो रिटायर हो रहे हैं, तो लंबित मुक़दमों की तादाद 82 हज़ार तक जा पहुंच गया है।
*उच्च न्यायालयों में 351 पद खाली*
जब जस्टिस चंद्रचूड़, मुख्य न्यायाधीश बने, तो उच्च न्यायालयों में जजों के 323 पद ख़ाली थे, आज दो साल बाद ख़ाली पदों की संख्या बढ़कर 351 पहुंच चुकी है।
उनके कार्यकाल का एक मामला ख़ासा दिलचस्प है, सुप्रीम कोर्ट अदालत की अवमानना के एक क़ानूनी पहलू की सुनवाई कर रहा था कि सरकार जजों की नियुक्तियों के मामले में क़ानून का पालन नहीं कर रही है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल कर रहे थे।
सुनवाई के दौरान उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार ने क़ानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया, तो वो सरकारी अधिकारियों को अदालत की अवमानना का दोषी मानेंगे।
जस्टिस कौल के कार्यकाल के आख़िरी दिनों में ये मामला लिस्ट होने के बावजूद सूची से ग़ायब हो गया।
ख़ुद जस्टिस संजय किशन कौल इस बात से हैरान रह गए थे। उन्होंने उस वक़्त कहा था, ‘मैंने इस केस को नहीं हटाया है, कुछ बातों पर मुंह बंद ही रखा जाए
तो बेहतर है।मुझे यक़ीन है कि चीफ़ जस्टिस को इस बात की जानकारी है।
ये एक विचित्र स्थिति थी क्योंकि जस्टिस संजय किशन कौल ने इस मामले को अपनी बेंच में 5 दिसंबर को लिस्ट करने के लिए कहा था।उसके बाद से इस केस की सुनवाई का अब तक नंबर नहीं आया है।
जब इस मामले की सुनवाई हो रही थी। तब न्यायपालिका ने केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ सख़्त टिप्पणियां की थीं।जिसके बाद जजों की नियुक्ति के मामले में कुछ प्रगति हुई थी।
अब तो उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के मामले अटके ही हुए हैं।
एक भी महिला जज की नियुक्ति नहीं की गई!
क़ानून मंत्रालय की वेब
साइट के मुताबिक़, उसके बाद से 30 से भी कम जज हाई कोर्ट में नियुक्त किए गए हैं।यहां तक कि जो नियुक्तियां हुई भी हैं, उनमें से कई जजों को नियुक्त करने और कुछ को हाई कोर्ट का जज नहीं बनाने को लेकर चिंताएं व्यक्त की गईं। फिलहाल, उनके कार्यकाल में उनके कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट में 18 न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।हालांकि, ऐसा करते वक़्त उन्होंने विविधता का पैमाना लागू करने का अपना वादा नहीं निभाया। उनके दौर में सुप्रीम कोर्ट में एक भी महिला जज की नियुक्ति नहीं की गई।
ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की चिठ्ठी:
ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने भी चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखी और आरोप लगाया कि वो वकीलों के सम्मान की हिफ़ाज़त कर पाने में नाकाम रहे है।इसके साथ साथ उस चिट्ठी में ये भी कहा गया था कि चंद्रचूड़ का “बेशक़ीमती वक़्त कार्यक्रमों में जाने में बीत रहा है और अगर वो अपना व्यवहार नहीं बदलते हैं तो बार एसोसिएशन ये कहेगी कि चीफ जस्टिस अपने ओहदे की ज़िम्मेदारियां निभाने से ज़्यादा ‘पब्लिसिटी’ पाने पर ज़ोर दे रहे हैं।