कर्पूरी ठाकुर के साथ भूमिगत जीवन नेपाल में बिताने वाले, सीमांचल में भाई ताराचंद धानुका के नाम से ख्यातिलब्ध, क्रिकेट के क्षेत्र में जो योगदान भारत रत्न सचिन तेंदुलकर का है, वैसा ही योगदान भारतीय जीवन बीमा के क्षेत्र में देने भाई ताराचंद धानुका से विशेष बातचीत
दुर्केश सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज, बिहार/उतर प्रदेश -24जनवरी।
कर्पूरी ठाकुर पचास, साठ और सत्तर के दशक में बिहार के समाजवादी आंदोलन की पैदाइश थे। यह जानकारी देते हुए बिहार प्रदेश के किशनगंज जिले ठाकुरगंज निवासी लोहियावादी नेता भाई ताराचंद धानुकाजी जो आपातकाल के समय कर्पूरी ठाकुर जी के साथ नेपाल में भूमिगत जीवन बिता रहे थे ने कहा:वे हमारे राजनीतिक गुरु थे। भारत रत्न आज फिर सम्मानित हुआ है। यह देर से मिला राजनीतिक न्याय है। उन्होंने कहा:
वो इसी समाजवादी धारा के बड़े नेता बने और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने के साथ सोशलिस्ट पार्टियों के सर्वोच्च पदों तक गए।
अपने जीवन में उन्होंने एक चुनाव के अलावा सारे चुनावों में जीत हासिल की।इस रिकॉर्ड से ज़्यादा शानदार है उनकी सादगी और संघर्ष का रिकॉर्ड।
संघर्षों के बीच उनकी राजनीति निखरती गई, उनके निजी गुण सबके सामने आते गए और उनके बुनियादी राजनीतिक विचारों की स्वीकार्यता बढ़ती चली गई।
ये कर्पूरी ठाकुर ही थे जिन्होंने शिक्षा में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को खत्म किया था।उन्होंने सरकारी काम हिन्दी में करने की घोषणा की। लड़कियों के लिए पूरी पढ़ाई मुफ़्त की और सबसे पहले हिन्दी पट्टी में आरक्षण देने का फ़ैसला किया।
आरक्षण में भी उन्होंने महिलाओं और ग़रीब अगड़ों के साथ पिछड़ों को भी दो श्रेणियों में बांटकर लाभ देने का फ़ैसला किया था।
बहुत सारे लोगों को उनके ये फ़ैसले पसंद नहीं आए थे। उनका भारी विरोध हुआ। इन फ़ैसलों के चलते उनकी सरकारें गिरीं।
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बहुत ही पिछड़े इलाक़े के ग़रीब नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर जब मुख्यमंत्री बन गए थे, तब भी उनके पिता गांव में हज़ामत बनाया करते थे:
भाई ताराचंद धानुका ने कहा:
कर्पूरी ठाकुर जब पढ़ते थे, तब वह भी पुश्तैनी काम करते थे। बाद में चुनाव प्रचार के दौरान लोगों के दरवाज़े पर जाकर उस्तरा निकालकर दाढ़ी बनाने की पेशकश करते थे।वह कहते थे। आउ मालिक दाढ़ी बना दई छी।
कर्पूरी ठाकुर ऐसे नेता थे, जिनका सम्मान सभी करते थे. उनके जीवन मूल्यों की आज भी सभी सराहना करते हैं।उनके राजनीतिक विचार आज सर्वमान्य बन चुके हैं। उनके कार्यकाल में लिए गए फ़ैसलों का प्रभाव आज ज़्यादा प्रबल ढंग से महसूस किया जा रहा है।
लोग उनकी सादगी पर फिदा हो जाते थे।वे ऐसा सुबह से दोपहर के बीच कई-कई बार कर लेते थे। हर किसी को लगता कि वे कितनी मेहनत करते हैं और लोगों से कितने जुड़े हुए हैं।
बिहार का पिछड़ा आंदोलन उनकी पीढ़ी के साथ ही परवान चढ़ा। इस जमात में भी दबंग यादवों-कोइरियों-कुर्मियों के आगे नाई जाति के एक व्यक्ति की क्या बिसात हो सकती थी, जिनकी आबादी हर गाँव में एक-दो घर से ज्यादा नहीं होती।
दूसरी ओर, जनता पार्टी लगातार टूटती-बिखरती रही और अक्सर कर्पूरी ठाकुर को बेमन से किसी पक्ष में साथ होना पड़़ता था। पार्टी के विभाजन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लिया।
कर्पूरी ठाकुर की एक ख़ासियत थी कि उन्होंने कभी बुनियादी मूल्यों से समझौता नहीं किया। समाजवाद और सामाजिक न्याय उनके लिए सबसे बुनियादी मूल्य थे।
भाई ताराचंद धानुका ने कहा:
पिता की झोपड़ी के अलावा उनके पास कोई ज़मीन-जायदाद नहीं रही।कर्पूरी ठाकुर राजनीति के बहुत चतुर और कुशल खिलाड़ी थे। जनसंघ के साथ मिलकर सरकार बनाने के सवाल पर कर्पूरी ठाकुर ने उस समय के बड़े समाजवादी नेता रामानंद तिवारी के साथ दांव खेला।
नैतिकता का सवाल उठाकर कर्पूरी ठाकुर ने पहले रामानंद तिवारी से ‘सांप्रदायिक’ जनसंघ के साथ न जाने की घोषणा करवाई,तिवारी को समाजवादी विधायकों ने अपना नेता चुना था लेकिन वो मुख्यमंत्री बनने से रह गए और कर्पूरी ठाकुर ने जनसंघ के साथ मिलकर सरकार बना ली।
1974 के कांग्रेस विरोधी आंदोलन के दौरान जेपी मोतिहारी आए थे:
यह जानकारी देते हुए भाई ताराचंद धानुका ने कहा:हवाई अड्डा मैदान में विशाल जनसभा हुई। जेपी कुछ देर से आए थे और फिर ज़्यादा देर तक संबोधित करते रहे।
शाम होने पर जेपी ने ख़ुद ही बैठक ख़त्म करने की घोषणा की तो लोग वापस लौटने लगे।
अचानक जेपी को मंच के नीचे से कुछ शोर सुनाई दिया। मंच की निगरानी कर रहे स्वयंसेवक किसी व्यक्ति को ऊपर चढ़ने से रोक रहे थे।
जेपी की नज़र पड़ी तो उन्होंने हस्तक्षेप किया।यह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि कर्पूरी ठाकुर थे।
दरअसल, उनकी सामान्य वेशभूषा से कोई उनको पहचान नहीं पाया था।वे नेपाल में थे और सभा की जानकारी मिलने पर यहां चले आए थे।
जेपी ने लोगों से कर्पूरी ठाकुर को सुनने का आग्रह किया।यहीं कर्पूरी ठाकुर ने विधानसभा से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की। ये इस आंदोलन में बिहार विधानसभा से किसी विपक्षी का पहला इस्तीफ़ा था। कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न देर से मिला बड़ा न्याय है। उल्लेखनीय है कि भाई ताराचंद धानुका बचपन से गरीबों के हित में संघर्षरत हैं। जब देश को निवेश की सबसे अधिक जजरउत थी उस समय वे साइकिल से पूर्णिया प्रमंडल के सभी जिलों में घूमकर भारतीय जीवन निगम के लिए काम करते रहे। इसी दौरान वे कर्पूरी ठाकुर, लोहिया जी, चंद्रशेखर सिंह लोकनायक जयप्रकाश सिंह के विचारों से प्रभावित होकर समाजवादी राजनीति के पुरोधा बन गए। सुरजापुरी विकास मोर्चा के नाम से राजनीतिक दल का भी गठन किया। सीमांचल उन्हें भाई ताराचंद धानुका के नाम से जानता है। भारतीय जीवन बीमा निगम में उनका कार्य सेवा के क्षेत्र में अनुकरणीय उदाहरण है। क्रिकेट के क्षेत्र में जो योगदान भारत रत्न सचिन तेंदुलकर का है। भारतीय जीवन बीमा के क्षेत्र में वही योगदान भाई ताराचंद धानुका का है।