= इससे पहले बिल को लेकर संसद से सड़क तक विरोध देखा गया, ख़ासकर मुस्लिम संगठनों और नेताओं में
=कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इक़रा हसन ने तंज़ करते हुए कहा, “ग़ैर-मुस्लिम वक़्फ़ के लिए दान नहीं कर सकता, लेकिन वक़्फ़ काउंसिल और बोर्ड का सदस्य बन सकता है
=केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में भरोसा दिलाया कि इस बदलाव से मुसलमानों के धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा
दुर्केश सिंह, संपादकीय प्रभारी नजरिया न्यूज, 05अप्रैल।
वक्फ संसोधन बिल में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई सरकारी ज़मीन वक़्फ़ के रूप में पहचानी गई है, तो उसे वक़्फ़ नहीं माना जाएगा।
अनिश्चितता की स्थिति में क्षेत्रीय कलेक्टर यह तय करेगा कि संपत्ति पर किसका स्वामित्व है, और वह अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा।
सुप्रीम कोर्ट में वकील महमूद प्राचा ने इस प्रावधान पर सवाल उठाते हुए मीडिया से कहा कि “जब कलेक्टर राजस्व मामलों में ख़ुद एक पक्ष होता है, तो वह तटस्थ कैसे रह सकता है?”।
उन्होंने बताया कि किसी भी ज़मीन को वक़्फ़ घोषित करने से पहले सर्वेयर, जो एक सरकारी कर्मचारी होता है, सभी संबंधित विभागों को नोटिस भेजता है, ताकि अगर कोई आपत्ति हो तो उसका समाधान किया जा सके।
वक़्फ़ संशोधन बिल2025 के मुताबिक़, अब वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के फैसले को अंतिम नहीं माना जाएगा। इन फ़ैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।इससे मामलों के निपटारे में ज़्यादा समय लग सकता है।
हालांकि, मुस्लिम संगठनों का कहना है कि पहले भी हाईकोर्ट में अपील संभव थी और आज भी सैकड़ों मुक़दमे वहां लंबित हैं।
वक़्फ़ संशोधन बिल के ज़रिए यह व्यवस्था बदली गई है- सभी सदस्यों की नियुक्ति अब सरकार करेगी और उसमें कम से कम दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य कर दिया गया है।
इस बदलाव पर कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इक़रा हसन ने तंज़ करते हुए कहा, “ग़ैर-मुस्लिम वक़्फ़ के लिए दान नहीं कर सकता, लेकिन वक़्फ़ काउंसिल और बोर्ड का सदस्य बन सकता है.”।
सरकार की ओर से जवाब में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में भरोसा दिलाया कि इस बदलाव से मुसलमानों के धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के वकील फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी का मानना है कि ”जब यह बिल क़ानून बन जाएगा तो वक़्फ़ काउंसिल और राज्य वक़्फ़ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्य बहुमत में हो सकते हैं.”।
पहले के क़ानून में मंत्री को छोड़कर सभी सदस्यों का मुसलमान होना ज़रूरी था, जबकि अब संशोधित व्यवस्था में केंद्रीय वक़्फ़
काउंसिल के 22 में से 12 और राज्य वक़्फ़ बोर्ड के 11 में से 7 सदस्य ग़ैर-मुस्लिम हो सकते हैं, इसी बात की चिं
ता कुछ मुस्लिम संगठनों ने जताई है।
कांग्रेस के किशनगंज से सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इससे पहले बिल को लेकर संसद से स
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी -एक्स पर किए गए पोस्ट में प्रधानमंत्री ने लिखा, “दशकों तक वक़्फ़ व्यवस्था को पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी की कमी से जोड़ा जाता रहा. इससे ख़ास तौर पर मुस्लिम महिलाओं, ग़रीब मुसलमानों और पसमांदा मुसलमानों के हक़ प्रभावित हुए. संसद से पारित नए कानून पारदर्शिता बढ़ाएंगे और लोगों के अधिकारों की रक्षा करेंगे.”
ड़क तक विरोध देखा गया, ख़ासकर मुस्लिम संगठनों और नेताओं की ओर से।
बिल में वक़्फ़ बोर्ड की संरचना, संपत्ति के अधिकार और न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े कई अहम बदलाव किए गए हैं।
सरकार का कहना है कि वक़्फ़ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए ये ज़रूरी कदम हैं।वहीं विपक्षी दलों का तर्क है कि यह बिल अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
सांसद मोहम्मद जावेद की ओर से याचिका दाख़िल करने वाले एडवोकेट अनस तनवीर ने मीडिया से कहा, ”वक़्फ़ संशोधन बिल का मूल स्वरूप मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 25(डी) और 26 के ख़िलाफ़ है, क्योंकि इसके अमल में आने से सरकार का हस्तक्षेप मुसलमानों के वक़्फ़ में बढ़ जाएगा.”।
इस बिल के कई प्रावधानों पर मुस्लिम संगठनों ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं।
सरकार ने वक़्फ़ बोर्डों और सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल की संरचना में बदलाव किया है। इसमें अब ग़ैर-मुस्लिम सदस्यों को भी शामिल किया गया है।
वक़्फ़ संपत्तियों के सर्वे का अधिकार वक़्फ़ आयुक्त से हटाकर ज़िले के कलेक्टर को दे दिया गया है।
सरकार के कब्ज़े वाली ज़मीनों पर विवाद की स्थिति में कलेक्टर के आदेश को अंतिम माना गया है।
वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के निर्णय को अब अंतिम फ़ैसला नहीं माना जाएगा।इसके फ़ैसलों को अब हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
जो संपत्ति धार्मिक कार्यों के लिए इस्तेमाल में थी (वक़्फ़ बाय यूज़र), उसे अब वक़्फ़ नहीं माना जाएगा। नए प्रावधान में इसे हटाया गया है।
‘वक़्फ़ बाय यूजर’ के सिद्धांत का मतलब है कि ऐसी संपत्ति जो मस्जिदों और कब्रिस्तानों जैसे धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्य के लिए निरंतर उपयोग के कारण वक़्फ़ बन जाती है।भले ही इसे औपचारिक रूप से वक़्फ़ घोषित न किया गया हो।
वक़्फ़ करने के लिए अब यह शर्त जोड़ी गई है कि व्यक्ति को, कम से कम पिछले पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन करने वाला होना चाहिए।