अनिल उपाध्याय, वाराणसी ब्यूरो, 19नवंबर।
पूर्वांचल के चार जिलों के किसान खाद के लिए रतजगा कर रहे हैं। डीएपी का संकट है। छह जिलों में जरूरत से ज्यादा खाद है। किसानों की माने तो
मऊ, आजमगढ़, बलिया, चंदाैली में डीएपी की खरीदारी करने के लिए किसान रतजगा कर रहे हैं। किसानों को निजी समितियों से महंगे दामों पर खाद की खरीदनी पड़ रही है।
मऊ में आपूर्ति की स्थिति ज्यादा खराब है। यहां 2600 मीट्रिक टन की जगह 400 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराई गई है। इसके चलते किसान परेशान हैं। भाेर से ही किसान सहकारी समितियों के बाहर कतार में लग जाते हैं।
आजमगढ़ में भी नवंबर में 7800 मीट्रिक टन की मांग के सापेक्ष 900 मीट्रिक टन डीएपी व एनपीके आपूर्ति कराई गई थी। यहां भी किसानों में खाद के लिए मारामारी जैसी स्थिति है।
मऊ, आजमगढ़, बलिया, चंदाैली में डीएपी की खरीदारी करने के लिए किसान रतजगा कर रहे हैं। किसानों को निजी समितियों से महंगे दामों पर खाद की खरीदनी पड़ रही है।
रबी की फसलों की बोआई के लिए किसान डीएपी के लिए जूझ रहे हैं। पूर्वांचल के चार जिलों मऊ, आजमगढ़, बलिया, चंदौली में किसान रतजगा करके डीएपी लेने का प्रयास कर रहे हैं। समितियों के चक्कर काट रहे फिर भी डीएपी नहीं मिल पा रही। ऐसे में निजी समितियों से महंगे दाम पर डीएपी खरीदनी पड़ रही है। छह जिले ऐसे हैं, जहां जरूरत से ज्यादा खाद उपलब्ध है।
मऊ में स्थिति ज्यादा खराब है। यहां 2600 मीट्रिक टन की जगह 400 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराई गई है। इसके चलते किसान परेशान हैं। भाेर से ही किसान सहकारी समितियों के बाहर कतार में लग जाते हैं। आजमगढ़ में भी नवंबर में 7800 मीट्रिक टन की मांग के सापेक्ष 900 मीट्रिक टन डीएपी व एनपीके उपलब्ध कराई गई थी। यहां भी किसानों में खाद के लिए मारामारी जैसी स्थिति है।
बलिया जिले में 2600 मीट्रिक टन खाद की मांग है। डीएपी 1185 मीट्रिक टन और एनपीके 892 मीट्रिक टन उपलब्ध कराई गई थी। खाद की कमी के कारण फसल की बोआई पिछड़ रही है।
इन जिलों में खाद की उपलब्धता और जरूरत तथा संकट का कारण, जौनपुर जिले में भी आपूर्ति का संकठ
चंदौली में डीएपी और एनपीके की 8000 मीट्रिक टन की मांग है। 4571 मीट्रिक टन डीएपी व 1000 मीट्रिक टन एनपीके की उपलब्धता के कारण समस्या है। किसान निजी दुकानों से खाद खरीद रहे हैं। जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार यादव का दावा है कि सरकारी वितरण केंद्रों में 1000 मीट्रिक टन और 3571 मीट्रिक टन डीएपी खाद का स्टॉक निजी केंद्रों में है।
भदोही में नवंबर तक 2730 मीट्रिक टन डीएपी का लक्ष्य था, जिसके सापेक्ष 2987 मीट्रिक टन उपलब्ध कराई जा चुकी है। स्टॉक में 1210 मीट्रिक टन स्टॉक में है। एनपीके का लक्ष्य 950 मीट्रिक टन है, जिसके सापेक्ष 1397 मीट्रिक टन का वितरण हो चुका है, जबकि 935 मीट्रिक टन स्टाॅक में मौजूद है।
वाराणसी जिले की बात करें तो यहां डीएपी का लक्ष्य 6617 मीट्रिक टन है, जबकि 8896 मीट्रिक टन की उपलब्धता बनी हुई है। एनपीके का लक्ष्य 2264 मीट्रिक टन का है। इसके सापेक्ष 3282 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध है।
गाजीपुर में 12800 मीट्रिक टन डीएपी की मांग थी। इसकी तुलना में 14052 मीट्रिक टन डीएपी उपलब्ध कराई गई, जिसमें से 8979 मीट्रिक टन का वितरण हो चुका है, जबकि स्टाॅक में 5073 मीट्रिक टन डीएपी है। एनपीके की भी लक्ष्य 4200 के सापेक्ष 5616 मीट्रिक टन की उपलब्धता थी। इसमें से अभी भी 3404 मीट्रिक टन एनपीके समितियों के पास उपलब्ध है।
सोनभद्र में भी डीएपी का 1500 मीट्रिक टन और एनपीके का 400 मीट्रिक टन स्टॉक रिजर्व में है। अधिकारियों के अनुसार, क्षेत्र में अभी धान की कटाई हो रही है। दिसंबर के मध्य तक यहां पर मांग बढ़ेगी।
मिर्जापुर को लक्ष्य के सापेक्ष ज्यादा डीएपी मिली है। नवंबर तक डीएपी का कुल लक्ष्य 6416 मीट्रिक टन है, जबकि जिले को 6724 एमटी डीएपी उपलब्ध कराई गई है। डीएपी 1550 मीट्रिक टन और एनपीके का स्टॉक 970 मीट्रिक टन पीसीएफ (प्रोदेशिक कोआपरेटिव फेडरेशन) के गोदामों में उपलब्ध है।
जौनपुर में 20776 मीट्रिक टन डीएपी और 12336 मीट्रिक टन एनपीके का लक्ष्य है। अब तक 11966 मीट्रिक टन डीएपी, 6618 मीट्रिक टन एनपीके मिल चुकी है।
अधिकारी बोले
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की वजह से लक्ष्य के सापेक्ष यहां ज्यादा डीएपी उपलब्ध कराई गई है। समितियों को मांग से ज्यादा डीएपी दी गई है। किसानों की तरफ से अभी तक कोई शिकायत नहीं आई है।
– प्रियंका निरंजन जिलाधिकारी, मिर्जापुर
समस्या की एक वजह यह भी
खसरा खतौनी पर प्रति हेक्टेयर तीन बोरी डीएपी और छह बोरी यूरिया दी जा रही है। सुविधा के साथ ही यही नियम समस्या का कारण बन रहा है। एक बड़ी आबादी अधिया या बटाई पर खेती कराती है। खेत के कागज मालिक के नाम हैं पर जब बटाईदार खाद लेने जाता है तो उससे खसरा खतौनी और आधार कार्ड मांगा जाता है। अब बाहर रहने वाला व्यक्ति कागज भी उपलब्ध करा दे तो स्वयं मौके पर पहुंच पाना उसके लिए मुश्किल होता है। इसके चलते खाद को लेकर समस्या आ रही है।